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Tuesday, September 24, 2013

बस्तर की रणभूमि में कांग्रेस की उलझन

बस्तर की रणभूमि में अगर कांगे्रस टिकटों की उलझन से स्वयं को उबार लिया तो मैदानी मेहनत के बूते एंटी इनकंबैंसी फेक्टर को भुनाया भी जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि पहले खुद एकजुट हो जाओ। उसके बाद जनता के सामने पूरी रोटी खाकर जाओ।

मिशन 2013 के लिए बस्तर नई सरकार के स्वप्र को साकार करेगी। ऐसा यहां के रणनीतिकारों का मानना है। बस्तर और सरगुजा की आदिवासी बेल्ट के बूते दोनों बार भाजपा ने दस बरस तक सत्ता का स्वाद चख लिया। आगामी 26 को कांग्रेस युवराज राहुल गांधी के बस्तर आगमन को लेकर बड़ी तैयारी हो रही है। इसी तैयारी के साथ बस्तर में सत्ता वापसी की कोशिश पर जोर लगाने की जुगत भी चल रही है। आदिवासी सम्मेलन के बहाने बस्तर में पहुंच रहे राहुल गांधी यहां जीरम घाट पर नक्सली हमले के बाद पहली बार आ रहे हैं। हो सकता है कि वे यहां उस मामले को भी कुरेद जाएं। यह तो तय है कि नक्सली हमले के सवाल पर टारगेट में राज्य सरकार होगी। यह भी माना जा रहा है कि इसी के साथ जीरम हमले पर नई राजनीति का दौर भी शुरू होगा।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से अब तक पहली बार भारतीय जनता पार्टी को इतना लंबा अवसर सत्ता के संचालन के लिए प्राप्त हुआ है। वहीं सरगुजा और बस्तर के आदिवासी बेल्ट में कांग्रेस की साख क्यों गिरी? बस्तर की जनता का कांग्रेस से मोहभंग क्यों हो गया? इस पर अभी भी कोई चिंता हो रही हो ऐसा दिख नहीं रहा है। कांगे्रसी फिलहाल मुगालते में हैं कि एंटी इनकंबेसी फेक्टर काम करेगा और बस्तर से कांग्रेस को एकतरफा बढ़त के आसार हैं। मैदानी अवलोकन में जो हाल दिख रहा है उसके मुताबिक भारतीय जनता पार्टी बस्तर की लगभग सभी सीटों पर अपनी मैदानी तैयारी के साथ जुट गई है और कांग्रेस फिलहाल टिकटों की उलझन को लेकर गुत्थम गुत्था की स्थिति में दिख रही है। बस्तर में कांगे्रस की यही लड़ाई उसे खोखला करती रही है।
पहले बस्तर में मानकूराम सोढ़ी, अरविंद नेताम और महेंद्र कर्मा का अपना गुट हुआ करता था। तीनों अपने-अपने इलाकों में कांगे्रस के क्षत्रप रहे और उनके समर्थकों के बूते कांग्रेस लंबे समय तक महत्वपूर्ण भूमिका में रही। उम्र के ढलने के साथ मनकूराम सोढ़ी नेपथ्य में चले गए। अरविंद नेताम कई बार पार्टी बदलकर विश्वास के संकट से जूझ रहे हैं। महेंद्र कर्मा जीरम नक्सली हमले में शहीद हो गए। 2003 के बाद बस्तर में कांगे्रस का एक नया धड़ा सक्रिय हुआ जिसका नेतृत्व रायपुर से अजित जोगी कर रहे हैं। यहां 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह भी इसी गुट के खुले और भितरघात को माना जाता है। जिन क्षेत्रों में जोगी समर्थकों को टिकट नहीं दी गई वहां उनके दम पर निर्दलीयों ने पार्टी की हवा निकाली और जहां उन्हें निपटाना था उसके लिए उन्होंने राजनीति के सारे हथकंडे अपनाए। यही वजह है कि बस्तर में कांग्रेस के हाथ से 12 में से 11 सीटे सरक गईं।
बस्तर में कांग्रेस की राजनीति में बाहरी गुट के हावी होने का ही परिणाम रहा कि यहां की राजनीतिक आबो हवा पूरी तरह से बदल गई है। इस बार महेंद्र कर्मा के गुजर जाने के बाद एक नए रायपुरिया गुट का दबाव बस्तर में बढ़ रहा है वह है चरणदास महंत! महंत भली भांति जानते हैं कि अगर छत्तीसगढ़ में सत्ता में आना है तो बस्तर से उसकी चाबी लेनी होगी। बस्तर की जनता के बीच नई जिम्मेदारी मिलने के बाद से वे पूरी तरह सक्रिय हैं और अंदरखाने में पैनल में जो नाम भेजे गए हैं उसमें एक-एक नाम महंत के गुट से भी शामिल है। यानी बस्तर की राजनीति पूरी तरह से अब रायपुरिया हाथों में जाती नजर आ रही है। रायपुरिया राजनीति को लेकर यही उलझन इस बार मिशन 2013 की सबसे कठिन परीक्षा है। जिसमें पास होने के लिए बस्तरवासियों का भरोसा जीतना ज्यादा जरूरी है।
मजेदार बात तो यह है कि कांग्रेस के जिस दांव से बस्तर में पूरी बिसात बिखरी है अब वही गलती भाजपा में दोहराने की कोशिशें शुरू हुई हैं। बलीदादा की मौत के बाद लगातार यह स्थिति दिखाई दे रही है। बस्तर राजपरिवार के भाजपा प्रवेश के बाद रायपुर से पहुंची स्वागत की पाती यहां चर्चा में बनी हुई है। हांलाकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि भाजपा की रायपुरिया राजनीति का रंग बस्तरिया ग्रामीण मतदाताओं में कांग्रेस की तरह उलझन पैदा करेगा या नई राह दिखाएगा। खैर बस्तर की रणभूमि में अगर कांगे्रस टिकटों की उलझन से स्वयं को उबार लिया तो मैदानी मेहनत के बूते एंटी इनकंबैंसी फेक्टर को भुनाया भी जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि पहले खुद एकजुट हो जाओ। उसके बाद जनता के सामने पूरी रोटी खाकर जाओ।

कलेक्टर नहीं कांग्रेसी घायल...

कांगे्रसियों के लिए बुरी खबर हो सकती है कि अंकित आनंद कलेक्टर बस्तर घायल हो गए हैं। अंकित अपनी स्टाइल के अफसर हैं। इन्हें किसी नेता को अपने कंधे पर हाथ रखने देना मंजूर नहीं है। दंतेवाड़ा में उनकी कार्यशैली से परिचित लोग जानते हैं कि उखड़े स्वभाव के सीधे चलने वाले ऐसे अफसर कम ही दिखते हैं। अंकित की कार्यशैली बताती है कि उन्हें इस बात की फिक्र भी नहीं कि उन्हें बस्तर में कलेक्टरी के लिए कितने दिन का अवसर मिलेगा? ऐसे अफसर से कांगे्रसी बेहद खुश थे। उन्हें लग रहा था कि चुनाव के समय आचार संहिता का सत्ता के प्रभाव में आचार नहीं डाला जाएगा। परिणाम स्वरूप कम खर्चे में कांग्रेसी अपना प्रचार अभियान चलाकर भाजपा को टक्कर दे सकेंगे। लोहंडीगुड़ा दौरे के दौरान कलेक्टर और एसपी के घायल होने के बाद कांग्रेसी बेचैन हैं। कांग्रेसियों को लग रहा है कि दुर्घटना में कलेक्टर नहीं कांग्रेसी घायल हुए हैं।

चेंबर के चुनाव का असर...

बस्तर चेंबर आफ कामर्स के कुल सदस्यों की संख्या 1824 है पर इसके निर्वाचन का असर पूरे बस्तर पर एक समान पड़ता है। इस बार चेंबर के चुनाव में दल-गत राजनीति को शामिल करने की कोशिशें की गईं। परिणाम बता रहा है कि इसे व्यापारियों ने नकार दिया। भंवर बोथरा की दूसरी पारी एक तरफा जीत के साथ आई है। बोथरा मूलत: कांग्रेसी विचारधारा के हैं। इस जीत के साथ हो सकता है वे आने वाले समय में अपनी किसी और पारी की तैयारी भी कर रहे हों। सो सनद रहे वक्त पर काम आवे...।

चर्चा में आ•ा...

बस्तर सांसद दिनेश कश्यप को मुख्यमंत्री अपने साथ बीजापुर क्यों नहीं ले गए?
क्या कमल चंद्र भंजदेव को भाजपा सरकार दशहरा में रथारूढ़ कर नई राजनीति को जन्म देगी?
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