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Monday, September 23, 2013

मनगढ़ंत बातों की बुनियाद पर जुटा तंत्र


‘आंडवे नंबल्क इंग्ये सावड़िक्य अनपीरक्रार बलार्क नंब यन्ना सच्चीय मुड्यिुम।’ तमिल में कही गई इन बातों का मतलब ‘ईश्वर ने हमें यहां पर अगर मरने के लिए भेजा है तो हम क्या कर सकते हैं?’ यह बात मेरे एक तमिल मित्र ने सीआरपीएफ के दो जवानों के बीच हो रहे संवाद में सुनी थी। इन जवानों को दंतेवाड़ा में उनकी बटालियन के साथ पोस्ट किया गया था। इससे पहले वे जम्मू कश्मीर में अपनी सेवा दे चुके थे। यह वाक्या करीब तीन बरस पहले 2011 में मई—जून के बीच हुआ। दो जवानों के संवाद को सुनने के बाद मेरे ​तमिल मित्र ने उन्हें तमिल में बात कर पास बुलाया और उनके दिल का हाल जानने के कोशिश की।

वे बस्तर में अपनी पोस्टिंग से बेहद घबराए लग रहे थे। उन्हें लग रहा था कि यहां से अगर जिंदा लौट पाए तो…। खैर यह तो यहां के हालात को बयां करने की कोशिश भर है। आखिर हमारी सरकार इस बात को कब समझे कि हालात काबू में नहीं है और इसे किस तरह से काबू में लाया जाए। बस्तर संभाग के सभी सातों जिलों में नक्सलियों का दायरा बेहद तेजी के साथ बढ़ा है।
दस बरस में विकास की घोषणाओं के बीच यह कड़वा सच तमिल में की गई इस वार्तालाप से साफ समझा जा सकता है। यानी बस्तर में अपनी सेवा देने पहुंचने वाली फोर्स की मनोस्थिति क्या है? अगर इस मनोस्थिति में फोर्स से आप बहुत कुछ की उम्मीद लगाए बैठें है तो आप पूरी तरह से गलत हैं।
शनिवार की अल सुबह पड़ोसी राज्य मलकानगिरी में वहां तैनात फोर्स ने उड़ीसा के इतिहास में सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की है। पोड़िया थाना क्षेत्र में हुए मुठभेड़ में 14 नक्सलियों को मार गिराया। बड़ी मात्रा में असलहा बरामद किया गया है। कैंप के सामान की बरामदगी इस बात की पुष्टि कर रहा है कि यह मुठभेड़ कम से कम फर्जी तो नहीं है।
इस कामयाबी के बाद छत्तीसगढ़ के डीजी रामनिवास और एडीजी इंटीलिजेंस मुकेश गुप्ता ने जो तथ्य पेश किया है वह बेहद चौंकाने वाला है। छत्तीसगढ़ पुलिस की इनपुट पर उड़ीसा में कार्रवाई से सफलता की कहानी को मलकानगिरी के एसपी अखिलेश्वर सिंह ने सिरे से नकार दिया है। क्या छत्तीसगढ़ पुलिस केवल इसी तरह की मनगढ़ंत बातों की बुनियाद पर नक्सलवाद से निपटने में जुटी है? यह तथ्य बेहद चिंताजनक है।
रही बात सरकार की तो उसे इस बात का गौरव बखान करने से पहले सोचना चाहिए कि उसने छत्तीसगढ़ के दक्षिणी हिस्से को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। उसे नक्सलवाद के मसले पर लोगों का भरोसा हासिल नहीं हो पा रहा है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस को लोग इस मामले में पाक साफ मान रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि चाहे केंद्र की युपीए सरकार हो या राज्य की भाजपा सरकार दोनो ने नक्सलवाद के मसले को एक—दूसरे पर ठीकरा फोड़ने भर के लिए रख छोड़ा है।
ताड़मेटला में 76 जवानों की शहादत के बाद दुनिया के सबसे बड़े पैरा मिलट्री फोर्स के हौसले पर सीधा असर पड़ा है। यहां आने वाली ​फोर्स मन ही मन इस बात का ताना—बाना बुनते नजर आती है कि उसे सुरक्षित बिना नुकसान यहां से लौटना है। युद्ध के हालात हैं पर जवान मन से युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं। फिलहाल छत्तीसगढ़ में सरकार चुनाव की तैयारी में जुटी है। भाजपा सरकार की विकास यात्रा पूरी हो चुकी है। विपक्ष कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा भी झीरम घाट पर नक्सली हमले का शिकार होने के बाद पूरी हो चुकी है। झीरम घाट पर नक्सली हमले की जांच देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी एनआईए के जिम्मे है। ​अभी तक उसे क्या सफलता मिली और कब तक सफलता की उम्मीद की जाए यह सवालों में है। इस हमले के बाद सरकार चाहे केंद्र हो या राज्य क्या सबक लिया यह समझ में नहीं आ रहा है।
बस्तर में हालात के लिए राज्य सरकार की जिम्मेदारी से इंकार नहीं किया जा सकता। नक्सल मोर्चे पर केंद्र और राज्य सरकार की न तो स्पष्ट नीति है और न ही स्पष्ट कार्रवाई! जिसका सीधा असर पड़ना स्वा​भाविक है। जिला पुलिस बल के एक जवान कहते हैं कि ‘भाई साहब उनके (नक्सली) पास तो खोने के लिए कुछ भी नहीं है हमारे पास बहुत कुछ है। हमारे पास परिवार है, जिम्मेदारी है जिससे पलायन नहीं कर सकते। सो इस सोच का असर पर हमारी गतिविधियों पर पड़ता है।’
छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में नक्सली मुवमेंट से निपटने में राज्य की नीति ही कारगर साबित हुई है। उसने अपनी सीमा के भीतर समस्या से निपटने के लिए केंद्र की ओर टकटकी लगाने की बजाए आंतरिक सुरक्षा नीति पर गंभीरता से काम किया। आंध्र प्रदेश में कई बातें अनुकरणीय हैं पहली यह है कि उसने यह माना कि नक्सलवाद से निपटने के लिए कानून के दायरे में रहकर सही काम किया जाए। अपने खुफिया सूचना तंत्र को ज्यादा मजबूत किया जाए। आत्मसमर्पण की नीति का सही पालन किया जाए। जरूरत पड़ने पर सधी हुई सीधी कार्रवाई की जाए। छत्तीसगढ़ में ऐसा क्यों नहीं हो सका? सच्चाई तो यह है कि यहां हम अपने इलाके के राष्ट्रीय राजमार्ग का न तो निर्माण करवा पा रहे हैं और ही उसकी हालत सुधार रहे हैं। जिन इलाकों में नक्सलियों की पैठ की सूचना मिल रही है उसे उसके हाल पर छोड़ रहे हैं। नीतियां तो खूब बनाई पर उस पर अमल जैसी स्थिति नहीं दिख रही। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री की योग्यता? समझ? और कार्रवाई को तो लोग देख समझ ही रहे हैं। जब तक प्रदेश सरकार अपने इलाके में हो रही नक्सली हिंसा के खिलाफ सही कार्रवाई करने के बजाए इधर—उधर जिम्मेदारी थोपने और खाली हाथ बैठकर श्रेय लेने का जुगाड़ करने वाले अफसरों के भरोसे रहेगी तो वही होगा जो हो रहा है।

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