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Sunday, October 6, 2013

राहुल बनाम रमन, राजनीति की बिसात पर बस्तर



बस्तर में बीते सप्ताह राजनीतिक रैलियों का बड़ा दौर देखने में आया। पहले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आदिवासियों का अधिकार दिलाने लाल बाग मैदान में बड़ी व सफल रैली कर निकले उसके ठीक बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने उसी मैदान में अपनी उपलब्धियां गिनाई और कठघरें में कांग्रेस को खड़ा करने से नहीं चूके।
डा. रमन सिंह ने मंच पर बस्तर राज परिवार के सदस्य और हाल ही में भाजपा के प्राथमिक सदस्य बने कमल चंद्र भंजदेव को जितनी तरजीह दी उतनी तो कमल चंद्र ने भी उम्मीद नहीं की थी। खैर कोई बात नहीं डा. रमन ने कमल चंद्र के कंधे पर बंदूक रखा और गोली कांग्रेस पर दाग दी। महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की हत्या के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताते बस्तर की जनता के सामने राज परिवार के प्रति सहानुभूति अर्जित करने की कोशिश की है। खैर जब डा. रमन को यह लग रहा है कि उन्होंने बस्तर के लिए बहुत कुछ किया है तो ऐसी सहानुभूति अर्जित करने की कोशिश के पीछे क्या बड़ी वजह हो सकती है। यह बात किसी के समझ में नहीं आ रहा है।
खैर यह कोई बड़ी बात नहीं है जिसे लेकर यह कॉलम लिख रहा हूं। मेरी नजर में बड़ी बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक और पीएम इन वेटिंग 2 नरेंद्र मोदी पूरे देश से लोहा इकट्ठा कर लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा बनवाना चाह रहे हैं। और इतिहास गवाह है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ही वह शख्स हैं जिन्होंने भारत के भीतर आजादी के बाद देशी रियासतों को भारतीय संघ में विलीनीकरण में महत्वपूर्ण योगदान निभाया। यानी जिस राजशाही को सरदार पटेल ने खत्म किया उसी राजशाही को डा. रमन बढ़ावा देते फिर रहे हैं।
बस्तर राज परिवार के भाजपा प्रवेश के बाद बस्तर भाजपा में कहीं न कहीं अंदरखाने में कुछ तो गड़बड़ी है जिसे खुलकर कोई बताने को तैयार नहीं है पर महसूस सभी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बस्तर के निर्वाचित नेताओं से ज्यादा राजपरिवार को तरजीह देकर यह जताने कोशिश कर रहे हैं कि उनके लिए प्राथमिकता में बस्तर राज परिवार है बाकि दूसरे दर्जे में...। लालबाग मंच पर मुख्यमंत्री ने कमलचंद्र भंजदेव के सम्मान में जो शब्द कहें हैं उससे भी यही संदेश गया कि महाराजा कमल चंद्र भंजदेव और बस्तर राज परिवार के आशीर्वाद से डा. रमन बस्तर से तीसरी पारी की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं। शायद वे दस बरस के विकास का जो दावा कर रहे हैं उससे खुद सहमत नहीं हैं? जीरम घाट पर नक्सली हमले के बाद डा. रमन बैकफुट पर हैं यह साफ दिखने लगा है। हांलाकि बस्तर में ऐसी कोई साफ स्थिति दिखाई नहीं दे रही है कि जीरम हमले के बदले में सरकार के ​खिलाफ वोटिंग होने जा रही है। बावजूद इसके मुख्यमंत्री विरोधियों को ऐसा मौका क्यों देना चाह रहे हैं समझ में नही आ रहा है? यही वजह है कि लालबाग मैदान में मंच पर जो कुछ हुआ उसे लेकर न केवल बस्तर के जनमानस पर बल्कि यहां के जनप्रतिनिधियों के मन पर भी यही सवाल तैर रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस मंच पर डा. रमन के ठीक बगल में कमल चंद्र भंजदेव को जगह दी गई और उस फूल माला के ​भीतर उनके चेहरे को स्थान दिया गया जिसे लोकतंत्र में निर्वाचित नेताओं ने मुख्यमंत्री के लिए संभालकर रखा था। क्या यह लोकतंत्र के विजयी नेताओं का सीधा अपमान नहीं है?

इसी लालबाग के मैदान पर कांग्रेस ने अपनी सभा आयोजित की थी। इस सभा में राहुल गांधी ने जीरम घाट पर हुए हमले को लेकर सरकार को कठघरें में खड़ा किया। बस्तर में पहली बड़ी सभा आयोजित की गई थी इसका नाम आदिवासी अधिकार रैली दिया गया था। 2003 और 2008 के चुनाव परिणाम के बाद बस्तर में भारतीय जनता पार्टी लगातार भारी बहुमत हासिल कर रही है। यही कांग्रेस की चिंता की वजह है। कांग्रेस अब अपने खोए हुए जनाधार को पाने की कोशिश में जुटी है। इसके लिए वह कांग्रेसियों की मौत को मुद्दा बनाने से नहीं चूक रही। बस्तर के लोग यह जानते हैं कि यहां का नक्सलवाद न केवल भाजपा की देन है बल्कि वे मानते हैं कि इस समस्या के जड़ में कांग्रेस और भाजपा दोनों का समान हाथ है। किसी ने भी ईमानदारी से समस्या से निपटने की कोशिश नहीं की। रही बात नेताओं के मौतों की तो यह साफ दिख रहा है​ कि बस्तर में बीते दस बरस में करीब दो हजार मौतें हो चुकी हैं। जिसमें पहली बार किसी राजनीतिक दल को सीधा निशाना बनाया गया है। सत्तारूढ़ भाजपा की सुरक्षा की चूक को सभी मान रहे हैं। पर यह कोई बड़ा चुनावी मुद्दा बन पाएगा यह नहीं दिख रहा है। ताड़मेटला में 76 जवानों की शहादत, रानीबोदली में 55 जवानों की शहादत, चिंगावरम में 32 लोगों की शहादत न जाने और कितनी घटनाएं। जब तक याद न दिलाओ कोई याद करने को तैयार नहीं है। ऐसे में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की हत्या को राजनीति से जोड़कर डा. रमन बस्तर की बिसात पर नई राजनीति कर रहे हैं।
सुरेश महापात्र

राजनीति की बिसात पर बस्तर पर एक—एक कर गोटियां खेलने का काम डा. रमन सिंह कर रहे हैं। जो वे कर रहे हैं उससे साफ दिख रहा है कि वे बस्तर को सीधे अपने कब्जे में लेना चाह रहे हैं। उन्हें बस्तर में स्थानीय क्षत्रप अब मंजूर नहीं है। वे नहीं चाहते कि कश्यप परिवार पहले जैसी मजबूत स्थिति में दिखे। क्या बलीदादा जिंदा होते तो डा. रमन सिंह में इतना साहस होता कि वे उन्हें हेलीकाप्टर से उतारकर विक्रम सिसोदिया को बिठा उड़ जाते। जिस बलीदादा के एक बयान पर डा. रमन का सिंहासन डोलता था उनकी अनदेखी का मतलब वे साफ समझते थे। पर उनके गुजर जाने के बाद परिस्थितियां बदल गईं हैं। यही वजह है कि डा. रमन बस्तर में दो मोर्चों पर स्वयं को मजबूत कर रहे हैं पहला कांग्रेस के खिलाफ और दूसरा कश्यप परिवार को दरकिनार कर एक क्षत्र राज...। इसके लिए वे राजमहल में नया क्षत्रप पैदा कर रहे हैं। इसके उलट राहुल गांधी बस्तर में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए एकजुट होने पर जोर दे रहे हैं। उनकी प्राथमिकताओं में कोई अकेला नेता नहीं है। वे समझ रहे हैं कि क्षत्रपों से मुक्त हो चुकी कांग्रेस को ऐसे कार्यकर्ताओं की जरूरत है जो पार्टी के प्रति वफादार हों न कि अपनी दुकान सजाएं।

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