Powered By Blogger

Monday, December 26, 2011

राणा सोम की वैश्विक सोच का नतीजा...

कंपनी की सामाजिक दायित्व के हिस्से में सीएमडी श्री सोम के दूरगामी सोच का परिणाम अब बस्तर में दिखने लगा है। जिला प्रशासन और शासन के साथ क्षेत्र की जरूरतों के मद्देनजर जिस तरह की परियोजनाओं को आर्थिक बल प्रदान किया गया उसे कभी नहीं भूलाया जा सकता।

भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की महानवरत्न कंपनी एनएमडीसी लिमिटेड के साथ भारत में संयुक्त उद्यम के इस्पात संयंत्र की स्थापना करने के लिए ओजेएससी सेवस्र्टाल रूस के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर नए युग का सूत्रपात साबित होगा। इस समझौते से एनएमडीसी की वैश्विक संभावनाओं को प्रखर गति मिल सकेगी। इसके माध्यम से एनएमडीसी रूस में कोकिंग कोल के खनन की दिशा में काम कर सकेगा। खनन के क्षेत्र में भारत का नाम रौशन करने वाली इस महानवरत्न कंपनी अब जेवीसी सेवस्र्टाल के साथ इस्पात निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में अपना कदम बढ़ा चुकी है। मेमोरेंडम आफ अंडरस्टेंडिंग पर एनएमडीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक राणा सोम और सेवस्र्टाल के सीईओ ए मोर्दाशोव एलेक्सी ने प्रधानमंत्री की रूस यात्रा के दौरान मास्को में हस्ताक्षर किया है। सेवस्र्टाल भारत में एक अरब डालर का निवेश करेगा। इस संयुक्त उपक्रम का निर्माण कर्नाटक किया जाएगा जिसके लिए कर्नाटक सरकार की ओर से एनएमडीसी को 2500 एकड़ जमीन आबंटित कर दी गई है। यह परियोजना देश की अब तक की सबसे बड़ी इस्पात परियोजना होगी। सेवस्र्टाल भारत में एक अरब डालर का निवेश करेगा। इस ज्वाइंट वेंचर में दोनों की भागीदारी 50-50 फीसदी होगी। इसकी प्रतिवर्ष उत्पादन क्षमता प्रारंभिक तौर पर दो लाख मिटरिक टन होगी जिसे पांच लाख मिटरिक टन तक बढ़ाया जा सकेगा। यह देश के लिए अब तक का पहला एमओयू है जिसके माध्यम से इस्पात निर्माण के दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन संभावित है। इस संयुक्त उपक्रम मेंं एनएमडीसी वरिष्ठ प्रबंधन टीम नियुक्त करेगा। इस उद्यम से बिजली व इस्पात के लिए बढ़ती घरेलू मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन करने अपनी नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकेगा। इन दोनों कंपनियों के बीच सहयोग समझौता ज्ञापन मात्र नहीं है, बल्कि यह दो देशों के बीच दोस्ती और सहयोग को आगे बढ़ाने इसे मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। माना जा रहा है कि एनएमडीसी की इस पहल से इस्पात बनाने और कोकिंग कोल खनन के क्षेत्र में आपसी सहयोग की संभावनाओं का पता लग सकेगा। इसके मद्देनजर सेवस्र्टाल के साथ समझौता एक स्वागत योग्य कदम है और यह दोनों कंपनियों को नए क्षितिज के लिए ले जाएगा। सीएमडी राणा सोम आगामी 31 दिसंबर को अपने पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। एनएमडीसी के सीएमडी के रूप में उनका यह कार्यकाल न केवल बस्तर को नई पहचान देने वाला रहा है बल्कि एनएमडीसी को वैश्विक परिदृश्य में अपने मानकों के साथ स्थापित करने का भी रहा। बस्तर में एनएमडीसी लौह अयस्क खनन का काम बीते 35 वर्षों से करती आ रही है पर यह पहला अवसर है जब बस्तर को उसकी उत्पादकता के साथ नई पहचान भी मिली। कंपनी की सामाजिक दायित्व के हिस्से में सीएमडी श्री सोम के दूरगामी सोच का परिणाम अब बस्तर में दिखने लगा है। जिला प्रशासन और शासन के साथ क्षेत्र की जरूरतों के मद्देनजर जिस तरह की परियोजनाओं को आर्थिक बल प्रदान किया गया उसे कभी नहीं भूलाया जा सकता। जगदलपुर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना ऐसा ही एक कदम है। सडक़, पुल-पुलियों के साथ एनएमडीसी ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सीएमडी राणा सोम के प्रयास के फलस्वरूप दंतेवाड़ा में पॉलिटेक्निक कॉलेज, आस्था गुरूकुल और ऐसी असंख्य शैक्षणिक गतिविधियों को स्वीकृति प्रदान की जिससे उम्मीदें जागी हैं। शिक्षा सहयोग योजना के तहत बस्तर संभाग में हजारों विद्यार्थियों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता से अभावग्रस्त विद्यार्थियों के उम्मीदों को आकाश की ऊंचाई मिल सकी है। बतौर सीएमडी राणा सोम किरंदूल-बचेली प्रवास पर पहुंचे हैं। उनसे दंतेवाड़ा के लिए प्रस्तावित योजनाओं की अभिस्वीकृति मिलने की भी संभावनाएं हैं। वे यहां की परिस्थितियों को समझते हैं और यहां के मर्म से गहराई तक वाकिफ हैं। उनके कार्यकाल में बस्तर को जो कुछ हासिल हुआ है उसके लिए बस्तर भी उनका धन्यवाद ज्ञापित करता है।

Saturday, December 24, 2011

नए चेहरों के साथ बस्तर में कांग्रेसी दांव

बस्तर जिला शहर अध्यक्ष, दंतेवाड़ा जिला अध्यक्ष और कांकेर जिले में नए चेहरों को मौका देकर बस्तर में कांग्रेस ने नई संभावनाओं की तलाश शुरू की है। वैसे भी बस्तर में फिलहाल खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है और पाने के लिए वही स्थिति है जो बीते सात बरस पहले भारतीय जनता पार्टी के पास हुआ करती थी।
संगठन के बूते बस्तर में कवायद...
लगातार दो दफे बस्तर में भाजपा से मात खाने के बाद कांग्रेस इस बार फूंक-फंूक कर कदम रख रही है। संगठन चुनाव की प्रक्रिया को लेकर पहली बार कड़ाई के सबूत देखने को मिल रहे हैं। बस्तर जिला शहर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मनोहर लूनिया के नाम पर मुहर लगी तो बहुत से लोग चौंक गए। अब दंतेवाड़ा जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए करण देव के नाम पर मुहर लगाकर एक बार फिर चौंका दिया है। जिस समय छह जिला अध्यक्षों की घोषणा पार्टी महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने दिल्ली में की उस समय भी करण देव सुकमा में थे। इसी से समझा जा सकता है कि अबकी बार कांग्रेस कैसे लोगों पर अपना दांव खेल रही है। दक्षिण बस्तर की राजनीति में महेंद्र कर्मा के चेहरे के बगैर लंबे अरसे से पत्ता भी नहीं हिला। इसके बाद कवासी लखमा का दांव अजित जोगी ने खेला। लखमा इस बार भी पूरी तरह से जद्दोजहद में जुटे थे। कर्मा जानते थे कि अब बेहतर परिणाम के लिए परिवर्तन जरूरी है। इसीलिए इस बार जब जिला स्तर पर डीआरओ ने बैठक ली तो कर्मा-लखमा ने बिना नाम दिए सब कुछ हाईकमान पर छोड़ दिया। इसी का परिणाम है कि करण देव जैसे पुराने कांग्रेसी को जिला अध्यक्ष के रूप में काम करने का मौका मिल सका। अगर राजनीति करनी है तो पार्टी के भीतर इसका असर देखने के बजाए विपक्षी दल पर इसका प्रभाव देखने की कोशिश की जानी चाहिए। करण देव कांग्रेस सेवा दल के प्रमुख के रूप में करीब डेढ़ दशक से काम करते रहे हैं। गांधी टोपीधारी कांग्रेस के इसी संगठन में फिलहाल देखने को मिलता है। बाहर से आने वाले पार्टी पदाधिकारियों और मंत्रियों को सलामी देने और सेवा करने का काम सेवादल का रहा है। इसे बेहद अनुशासित संगठन भी माना जाता है। पर कांग्रेस के भीतर सेवादल को नेपथ्य के संगठन के रूप में भी पहचाना जाता है। ऐसे बहुत ही कम उदाहरण देखने को मिलते हैं जब किसी सेवादल पदाधिकारी को सही स्थान पर नेतृत्व का मौका मिला हो। करण देव के नाम पर मुहर लगाने से कम से कम दक्षिण बस्तर में अब मुखौटे की लड़ाई नहीं रहेगी। संगठन अगर ठीक से काम करे तो लोगों तक उसकी पहुंच को कोई नहीं रोक सकता। पहले तो नंदकुमार पटेल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर राष्ट्रीय नेतृत्व ने एक बेहतर चुनाव किया। इसका असर अब दिखने लगा है। कांग्रेस में अब परंपरागत नेतृत्व की परिभाषा बदलती दिख रही है। परंपरागत नेतृत्व का परिणाम भी परंपरागत रूप से मिल रहा है संभव है इसी वजह से तेजी से परिवर्तन किए जा रहे हैं। अब संगठन में जिन चेहरों को तलाशा गया है उसे किस रूप में तराशा जाए यह बड़ा सवाल है। बस्तर ग्रामीण में लखेश्वर बघेल को दुबारा मौका दिया। वह भी सर्वसहमति के चलते। बस्तर जिला शहर अध्यक्ष, दंतेवाड़ा जिला अध्यक्ष और कांकेर जिले में नए चेहरों को मौका देकर बस्तर में कांग्रेस ने नई संभावनाओं की तलाश शुरू की है। वैसे भी बस्तर में फिलहाल खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है और पाने के लिए वही स्थिति है जो बीते सात बरस पहले भारतीय जनता पार्टी के पास हुआ करती थी।

आखिर कांग्रेस की अस्वीकार्यता की वजह क्या है? एक्जिट पोल के बाद दिखते हालात…

सुरेश महापात्र. लगातार दस बरस तक केंद्र की सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस के जो दुर्दिन 2014 में शुरू हुए थे उसका अंत फिलहाल नहीं है। सि...