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Monday, September 23, 2013

दूसरी पीढ़ी के कांग्रेस नेता और बस्तर….


बस्तर बदलाव के दौर से गुजर रहा है। यहां पहली पीढ़ी के नेता गुजरे जमाने की बात हो चुके हैं। आजादी के बाद यह पहला मौका होगा जब यहां वास्तव में वे नेता नहीं दिखेंगे जिनके नाम पर कभी बस्तर की राजनीति थर्राती थी। चाहे मामला प्रदेश की राजनीति में गुटीय समीकरण का हो या बस्तर में मुद्दों की राजनीति का…। वर्तमान में विपक्ष में दस बरस से बैठी कांग्रेस में एक खालीपन साफ दिखाई दे रहा है। कभी अरविंद नेताम, मनकूराम सोढ़ी और महेंद्र कर्मा की गुटीय राजनीति अपनी—अपनी आइडियोलॉजी के दम पर चलती रही। पर बस्तर की परिस्थितियां बदली और राजनीति की दशा—दिशा ही बदल गई है। ऐसे में बस्तर की कांग्रेस की राजनीति आने वाले दिनों में किस ओर किसके नेतृत्व में फलेगी—फूलेगी इस पर दबी जुबां से मंथन… 

छबिला नेताम
कांग्रेस सरकार में मंत्री रहते हुए हवाला घोटाले में नाम आने के बाद अरविंद नेताम की राजनीति पर सीधा असर पड़ा। 1996 के चुनाव में पार्टी ने तय किया कि ऐसे लोगों की टिकट नहीं दी जाएगी जिस पर किसी तरह का आरोप हो। परिणाम स्वरूप अरविंद नेताम के सामने अपनी पत्नी को टिकट दिए जाने का ​ही विकल्प रह गया। इस तरह से छबिला नेताम कांग्रेस टिकट से सांसद निर्वाचित हुईं और उनके दौर में अरविंद नेताम सांसद पति बनकर बैठे रहे। कोई ऐसी खास बात प्रभावित नहीं कर पाई जिससे छबिला नेताम बस्तर की राजनीति में धुरी बनकर उभर सकें।
शिव नेताम
तत्कालीन केंद्रीय मंत्री के छोटे भाई शिवनेताम की राजनीति अरविंद नेताम से शुरू हुई और वहीं खत्म हो गई ऐसा लगता है। 1993 में पहली बार निर्वाचित हुए और दिग्विजय मंत्रीमंडल में अरविंद नेताम के कोटे से वन मंत्री के पद को सुशोभित किया। वर्तमान में कांग्रेस और कांकेर की राजनीति केवल नाम ही बाकि है। अपनी खामियों के कारण 1998 के विधानसभा चुनाव में पराजित हुए और ऐसा कुछ खास नहीं है जिसे उपलब्धियों में गिना जाए।
डा. प्रीति नेताम
कभी देश की कांग्रेस राजनीति के सिरमौर रहे वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम इकलौते बस्तरिया नेता रहे जिन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल में कृषि राज्य मंत्री जैसा पद भी मिला। अपने दौर में उन्होंने जो कुछ किया उसका प्रतिफल बस्तर के लोक भोग रहे हैं। विकास के जो भी अवरोध दिखाई दे रहे हैं उसमें अरविंद नेताम का बड़ा योगदान रहा है। उनकी बेटी डा. प्रीति नेताम को पिछले चुनाव में कांकेर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिली पर कांकेर के मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। अरविंद नेताम के पुत्र राजनीति से परे अपनी व्यक्तिगत जीवन पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
शंकर सोढ़ी
कभी बस्तर लोक सभा क्षेत्र से यहां के अविजित योद्धा के रूप में मनकूराम सोढ़ी ने विधानसभा से लेकर संसद तक में करीब 30 बरस तक प्रतिनिधित्व किया। उनके परिवार से एक मात्र पुत्र को नेता के रूप में पहचान मिली वह भी पिता की छत्र छाया में वे रहे शंकर सोढ़ी। बस्तर की उम्मीद के मुताबिक न तो कूबत दिखी और न ही वह रंग—ढंग जिस पर बस्तरिया भरोसा कर सकें। 1993 में पहली ही जीत के बाद दिग्विजय सिंह मंत्रीमंडल में मनकूदादा के प्रभाव के चलते पद पर बैठे। अपने कार्यकाल में ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए जिससे यह साबित हो कि उन्होंने अपने राजनीति के दौरान बस्तर का हित किया हो!
दीपक कर्मा और छविंद्र कर्मा
ये दोनों नाम बस्तर के शहीद कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा के पुत्र हैं। अनायास पिता की छत्रछाया हटने से प्रदेश की राजनीति में इनकी भूमिका तलाशी जा रही है। इनमें से दीपक कर्मा पिछले दो कार्यकाल से दंतेवाड़ा नगर पंचायत के निर्वाचित अध्यक्ष हैं। छविंद्र कर्मा पिछले कार्यकाल में दंतेवाड़ा जिला पंचायत के अध्यक्ष निर्वाचित रहे। पिता के जीते जी ​दीपक कर्मा संगठन की राजनीति में सक्रिय हुए हैं और फिलहाल प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं। पिता की मौत से पहले दीपक के पास प्रदेश कांग्रेस में सचिव का पद था। युवक कांग्रेस के लोक सभा उपाध्यक्ष भी चुने गए। पर कांग्रेस की राजनीति में अनुभव के नाम पर पिता का नाम के सिवा फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है जिससे बस्तर की राजनीति को नई दिशा मिल सके। महेंद्र कर्मा की मौत के बाद कर्मा ब्रदर्श के सामने दंतेवाड़ा की राजनीति में वापसी की सबसे बड़ी चुनौती है। कांग्रेसी नेता भी मान रहे हैं कि इसके लिए उन्हें मैदानी मेहनत के साथ पिता के साथियों को साथ लेकर चलना होगा। अच्छे बुरे में फर्क और राजनीति के खेत में मतों की फसल आसानी से तैयार नहीं होती इस तथ्य को समझते हुए आगे बढ़ना होगा।
कवासी लखमा
पहले सरपंच फिर कांग्रेस टिकट से विधायक और अब प्रदेश के कांग्रेस में जोगी गुट के सक्रिय नेता कवासी लखमा को राजनीति में लाने का श्रेय दिग्विजय सिंह को जाता है। पर वे समय के साथ पाला बदलते हुए जोगी खेमे में समाहित हो गए। कवासी लखमा भले ही अनपढ़ हैं पर अपनी विशिष्ठ शैली के चलते सुर्खियों में ही रहते हैं। बलीदादा की मौत के बाद कांग्रेस ने बस्तर लोक सभा का टिकट देकर बड़ा मौका दिया। पर पराजित हो गए। हांलाकि वर्तमान में प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में वे ही एक मात्र निर्वाचित नेता हैं जो सदन में बस्तर का प्रति​निधित्व कर रहे हैं। पहला कार्यकाल दिग्विजय सिंह के साथ दूसरा कार्यकाल आधा दिग्विजय सिंह और आधा अजीत जोगी के साथ गुजरा। कर्मा गुट के खिलाफ दिग्विजय सिंह और अजीत जोगी के तुरुप के इक्के बने रहे। फायदा भी खूब उठाया। नाम के अनपढ़ हैं पर पढ़े लिखों को भी राजनीति पढ़ाने में महारत हासिल कर चुके हैं। बावजूद इसके कवासी लखमा के पास ऐसा कुछ खास नहीं दिख रहा जिससे बस्तर की राजनीति को बड़ा फायदा हो सके।
कवासी हरिश लखमा
कोंटा विधायक के रूप में कवासी लखमा तीसरी बार लगातार ​निर्वाचित हुए। तीसरी पारी में मतों का अंतर मामूली के स्तर पर आ पहुंचा है। इस दौरान कवासी लखमा के पुत्र हरिश अगली पीढ़ी के नेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। हरिश लखमा की राजनीति में अजीत जोगी के पुत्र अमित की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। पिता से परे जोगी स्टाईल में राजनीति की पाठशाला में पढ़ाई कर रहे हैं। वर्तमान में सुकमा जनपद अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हैं। आक्रामक राजनीति करते यदा—कदा दिखाई दे जाते हैं। यह भी एक तथ्य है कि कवासी हरिश ने युवक कांग्रेस चुनाव में दीपक कर्मा को पछाड़ते हुए लोकसभा अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया था। जोगी को बस्तर में जिस कांग्रेसी विधायक पर सबसे ज्यादा भरोसा है उनमें कवासी लखमा नंबर वन पोजिशन में हैं। हरिश लखमा को अमित जोगी हैंडल करते हैं टारगेट एक मात्र महेंद्र कर्मा के परिवार के खिलाफ दूसरी पी​ढ़ी का नेता खड़ा करना! हरिश लखमा में भविष्य की राजनीति छिपी दिख रही है। पर फिलहाल कोई ऐसी बात नहीं जो बस्तरवासियों को लुभा सके।
हो सकता है कि इन नेताओं के अतिरिक्त भी कोई नया चेहरा हो जो पहली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता हो। पर नेपथ्य में छिपे चेहरों को भांपा नहीं जा सका है। दूसरी पीढ़ी के जितने भी नाम सामने पैमाने पर देखे गए हैं। उनमें बस्तर की राजनीति को क्या फायदा पहुंच सकता है यह फैसला हमने बस्तरिया मतदाताओं के लिए छोड़ दिया है।
चर्चा में आज….
बलिदानी माटी कलश यात्रा में क्या कांग्रेस एकजुट दिखी?
सरकार की विकास यात्रा, कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा और बलिदानी माटी कलश यात्रा में भीड़ में चेहरे एक समान क्यों दिखे?
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