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Wednesday, March 14, 2012

नरम दिल इंसान, बेहतर अफसर और स्वाभिमानी व्यकित राहुल शर्मा का जाना

श्रद्धांजलि शेष
आज दोपहर बिलासपुर एसपी के रूप में युवा आर्इपीएस अधिकारी राहुल शर्मा की मौत की खबर ने चौंका दिया। खबर सुनने के बाद मानों स्तब्धता ने जकड़ लिया। मौत की परिसिथतियों ने जो बातें बयां की है उसके मुताबिक राहुल ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या की। यह बात उनकी कार्यशैली और जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिए को समझने के कारण स्वीकार नहीं हो पा रहा है। खैर अब राहुल शर्मा की यादें शेष हैं। किन परिसिथतियों के सामने उन्होंने स्वयं को असहाय पाया और जीवन से ज्यादा आसान मौत को पाते गले लगाने का दुस्साहस किया। यह हमारे लिए अबूझ पहेली ही रहेगा। राहुल शर्मा 6 अप्रेल 2006 से 9 जून 2009 तक दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक रहे। इस दौरान उनकी कार्यशैली को नजदीक से देखने का मौका मिला। अब सुकमा जिला में शामिल हो चुके उर्पलमेटा इलाके में नक्सलियों के कैंप का पीछा करते निकली सीआरपीएफ जब घात में फंस गर्इ, उसके बाद दूसरे दिन सर्चिंग में वे स्वयं निकले थे। सुबह से शाम हो गर्इ पैदल सर्चिंग करते हुए जवानों के शव हासिल किए जा सके। मैं भी उनके साथ निकली टीम में शामिल था। हमारी नजर खबरें तलाश रहीं थीं और राहुल शर्मा एक एसपी के रूप में अपने फर्ज को निभाने में जुटे थे। करीब 36 घंटे होने के कारण शव से दुर्गंध उठने लगी थी। एक एसपी के रूप में राहुल शर्मा ने पूरे रास्ते जवानों के शवों को कंधा दिया। मुख्यमार्ग में पहुंचने के बाद भी वे अपनी जिम्मेदारी के साथ डटे रहे। करीब 12 किलोमीटर पैदल जाना और लौटना, उसके बाद भी चेहरे में शिकन नहीं। यही देखा था हमने। जिम्मेदारी का ऐसा भाव कहां देखने को मिलता है। ऐसी ही एक पीड़ा तब दिखी जब जगरगुंडा से दोरनापाल की ओर रास्ता खोलने निकली हेमंत मंडावी की टीम नक्सलियों का शिकार हो गर्इ। जवानों का पता लगाने के लिए एक बार फिर वे निकले। थानेदार हेमंत मंडावी का शव देखने के बाद उनके चेहरों पर आए भावों को देखकर ही समझा जा सकता था। एक प्रकार से अपने जवानों से भावनात्मक रिश्ता रखने वाले राहुल अब सारे रिश्तों को खत्म करके दूर जा चुके हैं। नक्सल प्रभावित जिले में अफसरों की संवेदना ज्यादा आसानी से जनता को दिख जाती है। हिंसा से पीडि़त लोगों को अफसरों की अपनापन पिरोर्इ मुस्कुराहट से ज्यादा राहत मिलती है। वे हर किसी से मुस्कुराते मिलते। चैंबर में पहले ठंडा पानी फिर बातें। भले ही उसमें पुलिस की शिकायतें हों या किसी की पीड़ा। दंतेवाड़ा में किसी ने उन्हें कभी तनाव में झुंझलाते, गुस्सा दूसरे पर निकालते नहीं देखा है। बड़े से बड़े मसले को सहजता के साथ निपटा देना जैसे उनके लिए सबसे आसान काम था। वह भी इसलिए क्याेंकि वे अफसर से ज्यादा बेहतर इंसान थे। चुनाव के समय राहुल शर्मा ने यह भी दिखाया कि उनके लिए स्वाभिमान बड़ी चीज है उससे खिलवाड़ वे बर्दाश्त नहीं कर सकते। चुनाव पर्यवेक्षक बिहार कैडर के आर्इएएस सीके अनिल थे उनके व्यवहार ने बतौर एसपी काम कर रहे राहुल शर्मा के स्वाभिमान को स्वीकार नहीं हुआ तो उन्होंने पर्यवेक्षक के बारे में शिकायत करने से भी परहेज नहीं किया। यानी वे नरम दिल इंसान, बेहतर अफसर और स्वाभिमानी व्यकित थे। अब उनकी यादें शेष रहेंगी, हमारी श्रद्धांजलि।
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