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Friday, November 13, 2009

दिल्ली अभी दूर है मेरे भाई

आज का दिन मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि मैंने दंतेवाडा में रहते हुए आज ही एक कदम आगे बढाया है। यह कदम भी उस दुनिया की ओर जाता है जो भारत को दो हिस्सों में बांटने का काम करता है। कम से कम दंतेवाडा जैसी जगहों पर रहने वाले लोगों के लिए तो ऐसी जगहें बेहद चुनौतीपूर्ण ही है। अभी रात के पूरे बारह बज रहे हैं। एंटी नक्सल ओपरेशन के कारण रात नौ बजे के बाद दंतेवाडा में सन्नाटा छा जाता है। ठण्ड भी थोडी पड़ रही है। इसमे तो मेरे जैसे बेवकूफ ही जागने का कम कर सकते हैं। मुझे लगा की आज ही ब्लॉग तैयार हुआ है तो लिखा भी जाना चाहिए। इसीलिए आधीरात को बैठकर लिख रहा हूँ। पहली बात तो यही है कि जितनी मेहनत से लिख रहा हूँ इसके लिए मेरी शिक्षा अधूरी लग रही है। रोमन इंग्लिश में टाइप करना और भाषा कि ओर पूरा ध्यान भी रखना बेहद कठिन कार्य है। मुद्दा क्या है? बस यही कि दिल्ली से दंतेवाडा कि दूरी कितनी होनी चाहिए और वास्तव में कितनी है। आपको बता दूँ दिल्ली से दंतेवाडा पूरे साठ बरस दूर है। यहाँ तभी नक्सलवाद की छाया गहरे तक पैठी हुई है। छाहे इसके लिए राज्य सरकार जिम्मेदार हो या केन्द्र सरकार। जिम्मेदारी तो इन्ही में से किसी एक को लेनी होगी। माँ दंतेश्वरी के आर्शीवाद से यह जिला बन गया, इसीलिए यहाँ पूरा काम भगवान् भरोसे ही चल रहा है। एक ओर सरकार है तो दूसरी ओर नक्सली, लोग किसके पास जायें और किससे पूंछे जो कुछ बाकि है बस इनकी सांसे चल रही है। जब तक है तब तक है। यह भी बंद हो गई तो मांजी ही जानें? यही मुद्दा है कि ऐसा क्यों हुआ? अब सरकार इन गरीबों का भला करना चाह रही है। भले ही इसके लिए थोडी बहुत कुर्बानियाक्यों न लेनी पड़े। दिल्ली में बैठे नेता, वहां कि मीडिया किसी को इन बेचारों की आवाज सुनाई नही पड़ती है। यहाँ का हर आमो खास चाहता है कि समस्याएं ख़तम हो और समस्याओं का बहाना इसी बहने के सहारे दंतेवाडा अपने देश कि राजधानी से ६० बरस पीछे चला गया है। यही दूरी समस्या के प्रारब्ध और उसके अंत के बीच की सबसे बड़ी बाधा है।

1 comment:

  1. प्रिय सुरेश जी ,

    ब्लाग शुरू करने के लिए तहे दिल से मेरी बधाइया स्वीकारियें। बेशक दिल्ली इस अभागन जिले से कुछ ज्यादा ही दूर है परंतु मुझे उम्मीद है कि आप जैसों की प्रयासों से यह दूरी कम करने की प्रक्रिया की शुरूआत हो जायेगी और मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह ब्लाग लोक प्रियता के साथ-साथ इस जिले की प्रति बुद्धिजीवियों का ध्यान आकर्षित करने मे सफल होगी। एक कहावत है A problem is solved as soon it is Identified यहा तो समस्या यही है कि हमें यहा की समस्याओं का सही पहचान नही है वरना शायद हम भी दिली के ओर दो चार कदम चल पडे होते विगत 62 वर्षों में।

    भवदीय ,

    श्रीनाथ
    दंतेवाड़ा

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