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Tuesday, November 17, 2009

बाल दिवस पर अम्मोजी की आस्था

आज जब ब्लॉग लिखने बैठा तो एक साथ कई विचार आने लगे। मसलन १४ नवम्बर को बाल दिवस था इसे पूरे देश में कई रूपों में मनाया जा रहा है। दंतेवाडा के मेंड़का डोबरा मैदान में यूनिसेफ के सहयोग से काफी बड़ा आयोजन हो रहा है। इसमे बच्चों के लिए बाल फिल्मों का प्रदर्शन, चित्रकला प्रतियोगिता और भी ढेर सरे कार्यक्रम हो रहे हैं। इन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले बच्चे ही कुछ लिखने को बेबस करने लगे। यहाँ एक आस्था गुरुकुल है। इस गुरुकुल में उन बच्चों को रखा गया है जिनके माँ-बाप अब दुनियां में नहीं हैं। इससे जयादा खास बात यह है कि जिनके परिजनों कि हत्या नक्सलियों ने क़ी है ऐसे बच्चे इस गुरुकुल में पढ़-लिख रहे हैं। इन बच्चों ने अपनी दुनिया देखने से पहले ही सब कुछ खो दिया है। जिन इलाकों से इन बच्चों को दंतेवाडा तक लाया गया है वे धुर नक्सल प्रभावित हैं। जहाँ न तो शासन क़ी योजनायें संचालित हैं और न ही प्रशासन के नुमयांदे यहाँ झांकने तक की भी जहमत उठाते हैं।

इन बच्चों के लिए बाल दिवस का यह आयोजन उन्हें बाहर क़ी दुनिया दिखाने का बेहतर प्रयास महसूस हुआ। इन बच्चों में एक पांच साल क़ी अम्मोजी भी है। इश्वर कि लीला देखिये इस बच्ची के हाथ-पैर दोनों अविकसित हैं। चेहरे से सुंदर और मन से निर्मल अम्मोजी के माँ-बाप कि हत्या के दोषी नक्सली हैं। बाल दिवस के मौके पर वह चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेकर सपनो के रंग कार्ड शीट पर उकेरने में तल्लीन दिखी। उसे अपने जीवन में रंग चाहिए जो उसकी पूरी जिंदगी संवार दे। विषय था मेरे सपनो का भारत।

अम्मोजी कि ही तरह और भी ढेर सरे बच्चे इस इलाके में अनाथ हैं। इन बच्चों का चाचा नेहरू के जन्म दिवस से गहरा रिश्ता बनता दिख रहा है। मुझे लगा कि यदि चाचा नेहरू का जन्म दिवस नहीं मनाया जाता तो क्या होता? ये बच्चे भले ही यह नहीं जानते कि आजादी के बाद उनके जन्म तक इस इलाके की जो हालत हुई है। इसके लिए चाचा नेहरू जैसे नेताओं का ही ज्यादा हाथ रहा है।

मुद्दा एक और भी है। क्या इस आयोजन मात्र से बच्चों को उनका हक़ मिल जाएगा? मेरे ख्याल से नहीं अब आप ही बताएं क्या करें?

3 comments:

  1. kya bat likhi hai. maja aa gaya

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  2. sahi hai. aaj desh ki jo halat hai uske liye neta hi jimmedar hain.

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  3. सुरेश भाई ,
    मेंड़का डोबरा के मैदान में और भी रिपोर्टर हहें होंगे लेकिन मेरी नजर में यह मत्तेर नहीं आया.
    अम्मोजी के बारे में और भी विस्तार देने की जरुरत है. हालाँकि अभी कई अम्मोजी हैं जो और भी बदतर हाल में होंगी. आशा है ऐसे ही तथ्यों को हाई लाइट करें.
    सत्यनारायण पाठक

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