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Saturday, December 24, 2011

नए चेहरों के साथ बस्तर में कांग्रेसी दांव

बस्तर जिला शहर अध्यक्ष, दंतेवाड़ा जिला अध्यक्ष और कांकेर जिले में नए चेहरों को मौका देकर बस्तर में कांग्रेस ने नई संभावनाओं की तलाश शुरू की है। वैसे भी बस्तर में फिलहाल खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है और पाने के लिए वही स्थिति है जो बीते सात बरस पहले भारतीय जनता पार्टी के पास हुआ करती थी।
संगठन के बूते बस्तर में कवायद...
लगातार दो दफे बस्तर में भाजपा से मात खाने के बाद कांग्रेस इस बार फूंक-फंूक कर कदम रख रही है। संगठन चुनाव की प्रक्रिया को लेकर पहली बार कड़ाई के सबूत देखने को मिल रहे हैं। बस्तर जिला शहर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मनोहर लूनिया के नाम पर मुहर लगी तो बहुत से लोग चौंक गए। अब दंतेवाड़ा जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए करण देव के नाम पर मुहर लगाकर एक बार फिर चौंका दिया है। जिस समय छह जिला अध्यक्षों की घोषणा पार्टी महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने दिल्ली में की उस समय भी करण देव सुकमा में थे। इसी से समझा जा सकता है कि अबकी बार कांग्रेस कैसे लोगों पर अपना दांव खेल रही है। दक्षिण बस्तर की राजनीति में महेंद्र कर्मा के चेहरे के बगैर लंबे अरसे से पत्ता भी नहीं हिला। इसके बाद कवासी लखमा का दांव अजित जोगी ने खेला। लखमा इस बार भी पूरी तरह से जद्दोजहद में जुटे थे। कर्मा जानते थे कि अब बेहतर परिणाम के लिए परिवर्तन जरूरी है। इसीलिए इस बार जब जिला स्तर पर डीआरओ ने बैठक ली तो कर्मा-लखमा ने बिना नाम दिए सब कुछ हाईकमान पर छोड़ दिया। इसी का परिणाम है कि करण देव जैसे पुराने कांग्रेसी को जिला अध्यक्ष के रूप में काम करने का मौका मिल सका। अगर राजनीति करनी है तो पार्टी के भीतर इसका असर देखने के बजाए विपक्षी दल पर इसका प्रभाव देखने की कोशिश की जानी चाहिए। करण देव कांग्रेस सेवा दल के प्रमुख के रूप में करीब डेढ़ दशक से काम करते रहे हैं। गांधी टोपीधारी कांग्रेस के इसी संगठन में फिलहाल देखने को मिलता है। बाहर से आने वाले पार्टी पदाधिकारियों और मंत्रियों को सलामी देने और सेवा करने का काम सेवादल का रहा है। इसे बेहद अनुशासित संगठन भी माना जाता है। पर कांग्रेस के भीतर सेवादल को नेपथ्य के संगठन के रूप में भी पहचाना जाता है। ऐसे बहुत ही कम उदाहरण देखने को मिलते हैं जब किसी सेवादल पदाधिकारी को सही स्थान पर नेतृत्व का मौका मिला हो। करण देव के नाम पर मुहर लगाने से कम से कम दक्षिण बस्तर में अब मुखौटे की लड़ाई नहीं रहेगी। संगठन अगर ठीक से काम करे तो लोगों तक उसकी पहुंच को कोई नहीं रोक सकता। पहले तो नंदकुमार पटेल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर राष्ट्रीय नेतृत्व ने एक बेहतर चुनाव किया। इसका असर अब दिखने लगा है। कांग्रेस में अब परंपरागत नेतृत्व की परिभाषा बदलती दिख रही है। परंपरागत नेतृत्व का परिणाम भी परंपरागत रूप से मिल रहा है संभव है इसी वजह से तेजी से परिवर्तन किए जा रहे हैं। अब संगठन में जिन चेहरों को तलाशा गया है उसे किस रूप में तराशा जाए यह बड़ा सवाल है। बस्तर ग्रामीण में लखेश्वर बघेल को दुबारा मौका दिया। वह भी सर्वसहमति के चलते। बस्तर जिला शहर अध्यक्ष, दंतेवाड़ा जिला अध्यक्ष और कांकेर जिले में नए चेहरों को मौका देकर बस्तर में कांग्रेस ने नई संभावनाओं की तलाश शुरू की है। वैसे भी बस्तर में फिलहाल खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है और पाने के लिए वही स्थिति है जो बीते सात बरस पहले भारतीय जनता पार्टी के पास हुआ करती थी।

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