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Sunday, November 15, 2009

दिग्विजय के शिक्षाकर्मी और सरकार की उलझन

बातों-बातों में यही कोई १९९५ की बात है मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार ने प्रदेश में शिक्षकों की कमी और खजाने पर भर को देखते हुए पंचायत स्तर पर शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति का फैसला किया। यह देश में शिक्षा के क्षेत्र में पहला फैसला था जिसमे पंचायतो को सशक्त बनाने और स्थानीय स्तर पर शिक्षाकर्मियों की भरती की तयारी शुरू की। ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और जिला पंचायतो से गरद के अनुसार भरती की गई। पहली बार जब इन शिक्षाकर्मियों की नियुक्ति हुई तो मानदेय भी तय किया गया और साथ ही यह आदेश भी पारित हुआ कीशिक्षाकर्मियों की नियुक्ति प्रतिवर्ष पंचायतो से करवानी होगी। और पंचायतो को यह अधिकार दिया गया किकम नही करने वाले ऐसे शिक्षाकर्मियों को कम से हटा दें दूसरे बरस संसोधन आया कि पहले से कम करने वाले शिक्षाकर्मियों के अनुभव को महत्व देते हुए नियुक्ति कि जारी नियमानुसार लगातार तीन बरस तक पदस्थ शिक्षाकर्मियों को स्थाई नियुक्ति दी जायेगी। ग्राम स्तर पर बड़ी संख्या में बेरोजगारों को शिक्षाकर्मी, पंचायत कर्मी नियुक्त किए जाने के कारण ही १९९८ में मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह कीसरकार बनी। इसके साथ ही इन शिक्षाकर्मियों को लेकर शासन स्तर पर पेचीदगियां शुरू हुई। जब इनकी नियुक्तिकर्ता संस्थाएं पंचायतें हैं तो इन्हे शासन नियमित नियुक्ति कैसे दे सकता है? इसके साथ शुरू हुई शिक्षाकर्मियों के अधिकार, सम्मान और समान कार्य समान वेतन की लडाई। भारतीय जनता पार्टी तब विपक्ष में थी और इन्ही आन्दोलनरत शिक्षाकर्मियों के पंडालों में जाकर पार्टी के नेता आश्वस्त करते रहे कि जिस दिन उनकी सरकार आएगी शिक्षाकर्मियों की सभी मांगे मान ली जाएँगी। इस बीच मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ को पृथक राज्य का दर्जा मिला। तीन बरस तक अजित जोगी माथा फोडी करते रहे पर इन शिक्षाकर्मियों और पंचायतकर्मियों के स्थाई नियुक्ति समेत अनेक मांगें शासन स्तर पर उलझी ही रहीं। छत्तीसगढ़ में २००३ में चुनाव हुए और कमोबेश शिक्षाकर्मी, पंचायतकर्मी का मामला ही सरकार को ले डूबा। फिर आई भाजपा की बारी। आन्दोलनरत शिक्षाकर्मियों के पंडालों में जाकर आवाज बुलंद करने वाले भाजपा के नेता सत्तारूढ़ हुए। इन नेताओं से उम्मीदें पालना कोई बेजा बात नही रही। हालाँकि छत्तीसगढ़ बनने के बाद शिक्षाकर्मी भर्ती नियमों को लेकर काफी फेरबदल हुआ है। पर मुख्य मांगों को पूरा करने में भाजपा सरकार भी असमर्थ ही रही। वेतन में थोडी बहुत बढोतरी कर छोटी-मोटी मांगों को मानकर और संघ के नेताओं को मनवाकर सरकार अपना कम चलाती रही बीते पॉँच बरस में औसतन प्रतिवर्ष इसी मौसम में शिक्षाकर्मी आंदोलित होते हैं और सरकार की और से बर्खास्तगी की धमकी भी मिलती है। बाद में मामला सुलट जाता है। अब प्रदेश में ऐसे शिक्षाकर्मियों की संख्या karib एक लाख से jyada है। इनके aandolan से karib ५० लाख bachche prabhavit हो रहे हैं। अब इन आंदोलित शिक्षाकर्मियों के पंडालों में cangresi नेताओं का jamavada लगा हुआ है। यानि samsya के janmdata ही samsya के niptare का aalap कर रहे हैं। जब इनके hath में satta के sutra थे तो ऐसी कौन si bebasi थी यह भी इन नेताओं को manch पर खड़े होकर बोलना चाहिए। रही बात शिक्षाकर्मियों के asmita की तो यह सच है कि समान कार्य के लिए समान वेतन और सरकारी suvidhavon में dohra aadhar नही होना चाहिए। बीते डेढ़ dashak से शिक्षा के क्षेत्र में sevarat ऐसे शिक्षाकर्मियों कि umra और परिवार की jimmedari भी समझी jani चाहिए। mahangai के इस dour में jahan नियमित सरकारी karmchari bebas हैं। ऐसे में इन शिक्षाकर्मियों के भविष्य को लेकर सरकार धमकी देने के bajay sanvedna jatate phaisle ले तो jyada बेहतर होगा।

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